आस्तित्व नही बदलता है!
मैने सुना है अक्सर लोगों को कहते हुए ,
संगत अपना असर छोड़ जाता है।
लेकिन मैने कभी देखा नहीं,
काँटो को गुलाब जैसे महकते हुए।
रहते तो चंदन से लिपटे हुए साँप भी है,
लेकिन मैने देखा नहीं कभी,
दोनों की अपना आस्तित्व बदलते हुए ।
न ही चंदन अपनी शीतलता और सुगंध छोड़ता है।
न ही साँप अपना क्रोध और विष त्यागता है।
रहते तो काग और कोयल भी एक डाल पर
लेकिन न ही काग ,कोयल की तरह मीठा बोल पाता है
और न ही कोयल काग की तरह कर्कश बोलता है।
अर्थात जिसका जो आस्तित्व है,
वह कभी नही बदलता है।
संगत से संस्कार बदल सकते हैं
आस्तित्व नही।
~अनामिका