आसान नही नारी होना
त्याग , समर्पण भाव लिए
और ममता का स्वभाव लिए
जब नारी यह गुण लाती है
माता ही तो कहलाती है ।
वह निश्छल प्रेम दिखाती है
और भाव दया का लाती है
माता का दूसरा रूप लिए
वह बहन बनकर आती है ।
जब प्रेम का सागर निहित हो
और समर्पण असीमित हो
सुख दुख की साथी ही वो है
वह पत्नी नारी ही तो है ।
त्याग ऐसा कर सकते हो
क्या उर्मिला बन सकते हो ।
भक्ति तुम ऐसी रखोगे क्या
मीरा तुम बन सकोगे क्या ।
वह सावित्री भी नारी थी
जो यमराज पर भारी थी ।
क्या शील धरोगे तुम ऐसा
सीता ने धरा था जैसा ।
नारी तो जग की जननी है
कभी माता है कभी भगिनी है ।
घर की चारदीवारी होना
आसान नही नारी होना ।।
– चिंतन जैन