आसान नही कवि हो जाना
अंतर्मन की ज्वालाओं को शब्दों में पिरोना पड़ता है
काँटों के पथ ही मिलते हैं फूलों को खोना पड़ता है
तुलसी और सूर, कबीरा से निराला तक ने रोया है
पर उजियारों का धवल बीज अम्बर में जाकर बोया है
इस घोर तिमिर को मिटा सखे! आसान नही रवि हो जाना
चाहत को ठुकराना पड़ता है आसान नही कवि हो जाना
✍आशीष पाण्डेय “दिवाकर”