आसान नहीं
आसान नहीं
पुरुष होना आसान नहीं, ये जो दिखता है झूठा है,
बाहर से चट्टान सही, अंदर कोमल एक बूटा है।
सपनों को दबा रखता है, कर्तव्य का बोझ संभाले,
हंसते-हंसते सहता रहता, पीड़ा के भारी थाले।
आंसू को भीतर पीता है, दुनिया उसे रोने न दे,
दिल के दर्द छुपा कर रखता, न कोई साथी, न सखा।
संघर्षों का साथी बनकर, हर मुश्किल को झेलता है,
घर की नींव का पत्थर बन, हर तूफां को सहता है।
कंधों पर जिम्मेदारी का, भारी बोझ उठाता है,
हर दर्द भुलाकर हंसता, अपनों का सुख लाता है।
फिर भी उसको समझ न पाए, दुनिया की ये रीत पुरानी,
पुरुष होना आसान नहीं, इसकी भी सुन लो एक कहानी।