आसरा
जिंदगी के हर ज़हर को मय समझकर पी गया,
दर्द जब हद से बढ़ा तो होंठ अपने सी गया,
मौत कितनी बार मेरे पास आई ऐ”चिराग़”,
इक तेरे दीदार की ख़ातिर अभी तक जी गया।
जिंदगी के हर ज़हर को मय समझकर पी गया,
दर्द जब हद से बढ़ा तो होंठ अपने सी गया,
मौत कितनी बार मेरे पास आई ऐ”चिराग़”,
इक तेरे दीदार की ख़ातिर अभी तक जी गया।