*आसमाँ से धरा तक मिला है चमन*
आसमाँ से धरा तक मिला है चमन
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ये कली जो खिली है खिला है चमन,
खुद जड़ों से तनों तक हिला है चमन।
ये गगन है मगन टूटता है जगन,
आसमाँ से धरा तक मिला है चमन।
सह लिया वार जो भी किया यार ने,
अब न शिकवा न कोई गिला है चमन।
याद आती। नहीं बेवफाई करे,
प्रेम से ही भरा फिर किला है चमन।
देख लो शान-शौक़त वही मनसीरत,
आज भी राह पर यूँ शिला है चमन।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)