आषाढ़ के मेघ
हे आषाढ़ के मेघ सुना तुम अति बलशाली
कालिदास जी गा तुम्हें हुए गौरवशाली ।
सुना है मैंने हुए यक्ष के तुम ही साथी
तुझसे ही भेजी उसने प्रियतम को पाती ।
हो इतने सहृदय दर्द नहीं देखा जाता
होके द्रवित पर दुःख में गगन से अश्रु बहाता ।
समझ तुम्हें ही पात्र हूँ तुमसे विनती करती
हरो कृषक दुःख बरस करो ये अन्नमय धरती ।
कुछ मेघों को भेजो वृद्ध माँ-बाप के अश्रु लेकर
उनके कर में दो जो बसे दूर इनको तजकर ।
लाओ सुधि कुछ बलिदानी उन वीरों की भी
दो उनके परिजनों को तृप्त हो उनके उर भी ।
नदियों का नदियों तालों से करते संगम
कर जाना जगती के सब उरों का संगम ।