आषाढ़ी दोहे
सावन को दे भूमिका , लिखता उर्वर पाठ ।
कर्म शील आषाढ़ है , रचता सबके ठाठ ।।
हुआ विदा आषाढ़ है, दे बारिश सौगात ।
सावन द्वारे है खड़ा , करतीं बूँदें बात ।।
हरियाली भर ताजगी , खिला रही मुस्कान ।
आँचल धरती का सजा , आषाढ़ी अहसान ।।
रिमझिम रिमझिम गा रहीं , बूँदें रानी गीत ।
पावस सबकी हो सखी , क॔ठ लगाती मीत ।।
खेतों में भर नीर निधि , रोप दिये अरमान ।
अन्न दाता अधर खिले , कर पावस गुणगान ।।
डाॅ रीता सिंह
आया नगर , नई दिल्ली -47