आश पराई छोड़ दो,
आश पराई छोड़ दो,
जो करना वो खुद करो।
वक्त बदल चुका,
ईमान बदल चुका,
इंसान बदल चुका ,
बेईमान बदल चुका,
शैतान से बस थोड़ा कम ।
इसीलिए कहता हूं,
अपनों से डरो।
दूसरे तो दिखते वै क्या हैं,
कैसे पहचाने जो हैं निकट
बिना कराह की दर्द देतें हैं,
इसीलिए कहता हूं,
अपनो से डरो।
दिखते तो लुभावने,
पर बहुत हैं डरावने,
जो दिखते, खुली आँखों से।
ऐसे सपनों पर एतवार न करो।
इसीलिए कहता हूं,
अपनों से डरो।
खून के रिश्ते भी तो,
खून लगे बहाने।
अब तो आपस मे लगे,
दो दो हाथ आजमाने।
लाठी मारने से
पानी फटने लगा है।
तिल भर रिश्तेदार,
मन भर के दोस्त पर भारी,
इसीलिए कहता हूं,
अपनों से डरो।
सतीश सृजन