आशिकी
आशिकी प्रेम का पैगाम मांगती
बदले में घर परिवार की बलिदान मांगती
प्रेम की रंगभूमि में खरा उतरने के लिए
इंतिहान मांगती।
तू आजा मेरे साथ
रंगरेलियां मनाऊंगी
मां क्या सुनाई होगी
जो लोरियां मैं सुनाऊंगी
गा _गा के वह जुबान मांगती ।
देख लेना मैं तुझे क्या से
क्या बना दूंगी,
देवता से पत्थर
या पत्थर से देवता
बना दूंगी
एक बार अगर आए तो
सारा आसमान मांगती।
तू फिदा हो जाए इस कदर
मालूम हो! बदल गया मुक्कदर
तू जानता नही , मैं
कितनो का घर बार लूटी हूं
जुड़ जुड़ कर कई बार टूटी हूं
कई जान दे बैठे , फिर भी जान मांगती।
इसका न कोई मां बाप है
कहती है सिर्फ आप हैं बस आप हैं
नादानी का शिकार करती
जवानी को बेकार करती
कर कर के जुर्म इंसाफ मांगती।
हां सुनो मुझे
कौन जानता नही
मुझे पहचानता नहीं
दिल के दरवाजे को खटखटाती हूं
कुछ करने को बार बार उकसाती हूं
सौतन की तरह जान की दुश्मन बन जाती हूं
अक्सर मैं इश्क का
निशान मांगती हूं
मैं तो प्रेम का पैगाम मांगती हूं . ……