आशा
आशा (दोहे)
आशा हो सत्कर्म की,उत्तम मिले मुकाम।
सदाचार की आस में,हो अपना हर काम।।
आत्म प्रेम की कामना,से रच अपना गेह।
उससे आशा मत करो,जिसको प्रिय बस देह।।
आशा हो बस बुद्धि से,जागे सहज विवेक।
सत्य मार्ग पर गमन हो,सच्चाई पर टेक।।
जीवन भर हो साधना,अनुशासन दिन-रात।
त्याग मूल्य आशा बने,करो इसी पर बात।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
डॉ. रामबली मिश्र द्वारा रचित यह दोहा संग्रह “आशा” एक प्रेरणादायक और मार्गदर्शक रचना है, जो जीवन के मूल्यों और उद्देश्यों को दर्शाता है।
पहले दोहे में कवि ने सत्कर्म और सदाचार को आशा का आधार बताया है, जिससे उत्तम मुकाम मिले。
दूसरे दोहे में कवि ने आत्म प्रेम की कामना को महत्व दिया है, और देह के प्रेम से ऊपर उठने की सलाह दी है।
तीसरे दोहे में कवि ने बुद्धि और विवेक को आशा का आधार बताया है, जिससे सत्य मार्ग पर गमन हो और सच्चाई पर टेक मिले।
चौथे दोहे में कवि ने जीवन भर साधना और अनुशासन को महत्व दिया है, और त्याग मूल्य को आशा का आधार बताया है।
इन दोहों में, कवि ने जीवन के मूल्यों और उद्देश्यों को बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक ढंग से व्यक्त किया है, जो पाठकों को जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक समीक्षा