आशा है आएगा इंकलाब का काल !
समानता की राह में, एकता की बाँह में
देखो तो गौर से, बिछ गए हैं काटों का जाल।
नागों ने कर लिया है आपस में मंत्रणा,
फूलों और कलियों के खुशबू और रंगों को,
मिल के करेंगे गँदला !
हम इतने घायल हैं, दर्दों से पागल हैं
जख्मों पे पीट रहें हैं काल !
सपने सब झर रहे नयनों के कोर से,
बांधेगा कौन इस को उम्मीदों कि डोर से !
देखो तो शब्द मेरे, बुन रहा उम्मीदों का जाल !
आँसु कि गोद में, पल रहा प्रतिकार है,
शब्दों की बेनी पे क्रांति सबार है,
आशा है आएगा इंकलाब का काल !
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29 -12 -2018
मुग्धा सिद्धार्थ