आशा के दीप
“आशा के दीप”
मस्तिष्क छोड़ हिय में वापस आजाओ।
निज आदर्शों का कुछ तो बोझ हटाओ।।
हिय तारों में, फिर झंकार जगाओ।
और ऊर्जा ले आशा के दीप जलाओ।।०।।
मुझे नहीं पता क्या सही क्या गलत।
तुम्हे केंद्र में रखने का प्रयास रहा सतत।।
मन मंदिर की प्रतिमा हुई विघटित।
निज प्राणों से अंकुरण थे प्रस्फुटित।।
निज घट में मन को स्नान कराओ।।०।।
हिय तारों में, फिर झंकार जगाओ।
और ऊर्जा ले आशा के दीप जलाओ।।०।।
पतझड़ में कैसे फूल खिलाऊँ।
एकाकी नव बहार कैसे लाऊँ।।
किस किसको मैं मन की बात बताऊँ।
या कैंसे हर मन में बस जाऊँ।।
काँटों पर चलने का साहस न लेजाओ।।०।।
हिय तारों में, फिर झंकार जगाओ।
और ऊर्जा ले आशा के दीप जलाओ।।०।।
विश्वास और प्रगाढ़ चाहता रहा।
हिय पुष्प महके घ्रांणाकर्ष प्रवाहता रहा।
दल दल अगोचर त्राण चाहता रहा।
कमलकुञ्ज ऊर्ध्व प्राण चाहता रहा।।
कीचड़ जल पार करूँ,गर ऊर्जा बनजाओ।।०।।
हिय तारों में, फिर झंकार जगाओ।
और ऊर्जा ले आशा के दीप जलाओ।।०।।
शूल बढ़ते गये थमते गये झूले।
समिधाएं चढ़ाईं बहुत पर मन्त्र भूले।।
मन में गीत नहीं तो पथ में स्वांस फूले।
निज में खोए सदा हमे कहाँ भूले।।
अंतर्मन से निकलो या हमे वहाँ लेजाओ।।०।।
हिय तारों में, फिर झंकार जगाओ।
और ऊर्जा ले आशा के दीप जलाओ।।०।।
भौतिकी पढ़ी क्यों रसायन प्रबल हैं।
अति का प्रदर्शन,यानि बुद्धि निर्बल है।।
आस्थाएँ खोके सिर्फ अँधेरे का कल है।
ख़ुशी खोजते हुए दुःखी हर पल है।।
मुस्कान बिखेरो,खुशियों का अंबार लगाओ।।०।।
हिय तारों में, फिर झंकार जगाओ।
और ऊर्जा ले आशा के दीप जलाओ।।०।।
डॉ.कमलेश कुमार पटेल “अटल”