आशा की पतंग
१०)
” आशा की पतंग ”
अनंताकाश में उड़ती
हुई रंग बिरंगी पतंगें
कहती हैं मानों
मत लेना मुझसे पंगे।।
ऊँचाइयों को छूते हुए
एक दूजे से आगे बढ़ते हुए
आपस में चलती है होड़
कौन पहले आकाश को छूए।।
क्यों एक दूसरे को
काटे, मारे और गिराएँ
फिर उसके गिरने पर
ख़ुश हो तालियाँ बजाएँ।।
तेरी- मेरी में क्या रखा है
आओ मिलकर साथ उड़ें
एक पिता की हम संतानें
आओ मिलकर साथ बढ़ें।।
काटना ही है तो आओ
अंतस के पाप को काटे
मारना ही है तो आओ
मन के राक्षस को मारे।।
हटाना ही है तो आओ
कुत्सित विचारों को हटाएँ
मिटाना ही है तो आए
दिलों के बीच की दूरी मिटाएँ।।
छोड़े आशाओं की पतंगें
इस ऊँचे नील गगन में
बंधुत्व का भाव जगाएं
हर भारतीय के मन में ।।
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता, इंदौर