आशा का ही दीप जलाना है हमको
मृगतृष्णा से खुद को मत छलने देना
मन कभी निराशा को मत पलने देना
अपनी हर मंजिल को पाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको
है यदि दुख,कल सुख की बदरी छाएगी
राग सुरीले फिर से कोयल गाएगी
करनी हमको काँटों की परवाह नहीं
फूलों से हर चमन सजाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको
अभी रात काली है सुबह मगर होगी
कृपा सुनहरी किरणों की सब पर होगी *
चाल समय की सदा बदलती रहती है
साथ समय के कदम मिलाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको
मार पड़े कुदरत की या हो बीमारी
चाहें टूट पहाड़ पड़ें हम पर भारी
करना होगा हमें सामना हिम्मत से
हार मानकर बैठ न जाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको
21.5.2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद