आशाओं की पतंग
मकर संक्रांति आई है, मेरी भी पतंग हुड़वा दो ।
लिख के मेरी आशाएं, नील गगन में तुम तेरा दो ।
रिश्तो की डोरी टूट ना जाए ,मजे में मेरे मजबूती ला दो।
मेरी पतंग को समाज से, पैच लड़ाने का हुनर बता दो।
मकर संक्रांति के लड्डू ,पतंग में बांध देश के हर घर में पहुंचा दो ।
मेरी खुशी को चार गुना कर, मेरी पतंग ऊंची और उड़ा दो।
मेरी पतंग के तीन रंग रखकर, दुनिया में देश के नाम से मेरा नाम करा दो।
हवा में उड़ती मेरी पतंग को, उड़ने के सभी हुनर सिखा दो ।
मेरी पतंग कट ना पाए ,नील गगन में उड़ती जाए,
ऐसा कोई मंत्र बता दो ।
आशाओं की मेरी पतंग में ,अरमानों के पंख लगा दो ।
मकर संक्रांति आई है, मेरी भी पतंग हुड़वा दो ।
लिख के मेरी आशाएं, नील गगन में तुम तेरा दो ।
हर्ष मालवीय
बीकॉम कंप्यूटर तृतीय वर्ष
कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय हमीदिया
बी यू भोपाल मध्य प्रदेश