आव बैठ ले मजले कक्का (बुंदेली कविता)
आव बैठ ले मजले कक्का
हते कहाँ तुम ?
तुमसें मिलें जमानों हो गव ।
ऊँसई सूके कुआ बाबरी ,
ऊँसई नदिया नारे ।
बिखरे हैं रसगुल्ला जलेबी,
डरे करैया झारे ।
खिरका में अब बची नें जागा ,
बन गय हैं सरकारी बँगला ।
डरो चौंतरा शंकर जी कौ ,
आम हतो आँदी में गिर गव ।
आव बैठ ले मजले कक्का ,
हते कहाँ तुम ?
तुमसें मिलें जमानों हो गव ।
बिछी है चौपर बरिया नैचें ,
ताँस बिछी है खोरों खोरों ।
गिगयाने-से भुकयाने-से ,
कुत्ता भौंकें दोरों दोरों ।
कड़ी ऊपरै जर पीपर की ,
धसो चौंतरा खेरमाई कौ ।
कानीभौत में ढुरवा पिड़ गय,
छिरियें गेरीं कुचबंदियों ने ।
सरकारों की दौरें कारें ,
“गाँज बरें पूरों के लेखे” ,
तला हतो सो पूरौ चूँ गव ।
आव बैठ ले मजले कक्का,
हते कहाँ तुम ?
तुमसें मिलें जमानों हो गव ।
शब्दार्थ-
आव – आओ ।
मजले – मझोले ।
हते – थे ।
ऊँसयी – वैसे ही ।
सूके – सूखे ।
नदिया नारे – नदी-नाले ।
करैया – कड़ाही ।
खिरका – चारागाह ।
जागा – जगह ।
चौंतरा – चबूतरा ।
हतो – था ।
आँदी – आँधी ।
बरिया नैचें – बरगद के नीचे ।
ताँस – ताशपत्ती ।
खोरों खोरों – गली-गली ।
गिगयाने से – दीनहीन ।
भुकयाने से – भूखे ।
दोरों दोरों – द्वार द्वार ।
कड़ी – निकली ।
ऊपरै – ऊपर की ओर ।
जर – जड़ ।
पीपर – पीपल ।
खेरमाई – खेरमाता ।
कानीभौत – काँजीहौस ।
ढुरवा – पशु या ढोर ।
पिड़ गय – बंद हो गए ।
छिरियें – बकरियाँ ।
गेरीं – हाँक दीं ।
कुचबंदिया – एक खानाबदोश जाति ।
दौरें – दौड़ें ।
“गाँज बरें पूरों के लेखे” बुंदेली कहावत है जिसका अर्थ है कि अधिक हानि की थोड़ी गिनती करना ।