आवोहवा में जहर है
मधुमालती छंद
२२१२ २२१२ २२१२ २२१२
आवोहवा में जहर है,बहती हवा में असर है।
भड़का रहे हैं भावना ,बस दीखता अब कहर है।
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भोले अधर कुछ कह रहे, लब पे लिखा कुछ और है।
मन में छुपा है और कुछ,सारे जहां में शोर है।
सुनसान है ये रात पर,अब जागता ये शहर है।
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है कालिमा छायी हुई,आकाश गंगा छोर पर।
गांठें लगी हैं अनगिनत, विश्वास की हर डोर पर।
है धुंध दिखती आज ये, पर साफ चौथा पहर है।
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संगीत में दिखती नहीं, गहराई कोई आजकल।
अब काव्य मंचो पर पढे जाते हंसी ठठ्ठे सफल।
है ग़ज़ल बहकी हुई सी,खुद ढूंढती ये बहर है।