आवेष्
कुछ दिन पहले जेल में कुछ बंदियो से मिलना हुआ
उनकी आखों की मार्मिक पीड़ा लिखने की कोशिश इस गीत के द्वारा
??
इक पल के आवेश ने सबकुछ भयावह कर दिया
मेरे मन की अग्नि ने मुझको ही स्वाह कर दिया
क्रोध की चिंगारी मेरी ,मुझको ही सुलगा गयी
जला आशियाना किसी का ,घर मेरा भी जला गयी
सजा चिता अरमानों की खुद का ही दाह कर लिया
मेरे मन —-
पिंजरे का पंछी बन में, दर्द भरा मेरी आंखो में
सुलग रहा हूं पल पल मैं,उठे धुअॉ मेरी सांसो में
खुद ही अपने हाथों अपना जीवन आह कर लिया
मेरे मन —+
पलट जाये तस्वीर काल की, हर पल सोचा करता हूं
बन जाये सपना ये हकीकत ,जो में जीतामरता हूं
पश्चाताप की अग्नि भारी ,क्यूं ये गुनाह कर लिया
इक पल के आवेस ने सब कुछ भयावह कर दिया
मेरे मन की अग्नि ने मुझको ही स्वाह कर दिया
नूतन