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14 Sep 2020 · 1 min read

आवाह्न स्व की! !!!

हिन्दी दिवस का मचा है शोर,
पढते- पढते हो गया संध्या से भोर,
सच बता हे मनुज! क्या छलका नैना से नोर,
क्या हुआ कभी, हृदय में कंपन होड़,
तो क्यों हम बलिदान से पूर्व छाग को पुष्प चढ़ाएं,
सर-धर अलग करने से पहले क्यों कुछ गुणगान गाएं,
हमसब के मनसा में एक ही है तापसी,
दिवस बीतने पर न होगा सम्मान की वापसी,
है यदि हिन्दी प्रति थोड़ा भी नेह,
है याचना ! बदलें अपनी सम्पूर्ण वक्र ध्येय,
सच है हर भाषा होती सदा वंदनीया,
सबकी अपनी गरिमा है प्रसंशनीया,
करें न किसी का उपहास हम,
मातृशक्ति पर ही है क्यों विश्वास कम,
जिसके आंचल में हम पले-बढे,
उसके विरुद्ध ही हैं हम अड़े-खड़े,
कहीं न रह जाए उरगुहा में कोई मलाल,
कर्म पथ पर हम चल सकता थे ले मशाल,
सच है! एक दिन, एक से न होगा कभी,
हाथ बढ़ा, भारतीय श्रृंखला बनाएं सभी,
चल ! स्व दीया से भर दें जग में इंजोर,
एक सौ तैंतीस करोड़ की शक्ति है मुझमें पुरजोर ।

उमा झा

Language: Hindi
14 Likes · 18 Comments · 500 Views
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