आवाहन
इससे पहले कि न्याय ईतिहास की चीज बन जाये,
अनजाने गर्तों में दफ़न जाये.
अन्याय इसकी जगह ले ले,
शोषण और ज्यादती घर-घर खेले.
थाम दो वक्त की धारा को,
सिखा दो सुख की साँस लेना सर्वहारा को.
आने वाली पीढ़ी के हिस्से में अन्याय मत छोडो,
न्याय को अजायबघर की चीज बनाने वाली जंजीरों को तोड़ो.
हाँ ! तुम समर्थ हो ऐसा करने में,
क्या रखा है बार-बार मरने में ?
न्याय का पोषण करने वाला मरता नहीं है,
तुम जानते हो, न्याय के लिए मरना क्या अमरता नहीं है ?
बहुत हो चुका अब और क्या होना है ?
तुम्हारा अब भी ना चेतना बोध क्षमता का खोना है.