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2 Dec 2016 · 1 min read

आवारा

आवारा
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मैं बन जाऊँ पंछी आवारा
आवारा ही रहना चाहूँ
मद मस्त चाह है मेरी
नील गगन में ही रहना चाहूँ
जब याद आये धरती
इस पर रहने वालों की
तो मिलने चला आऊँ
देख सुन्दर धरती यही बस जाऊँ
इतने सुंदर लोग यहाँ के
पर बँधन में नहीं बँधना
आवारा हूँ
आवारा ही रहना चाहता हूँ

बैठ डाल पात पर
मीठे फल कुतरता
हर गली मुहल्ले और शहर
दुनियाँ दूर देश की सैर करता
दुनियाँ में डोल डोल
सुंदर सुंदर देशों को देख आऊँ
ना कोई कुछ कहने वाला
न कोई कुछ सुनने वाला
मन मरजी करने वाला
रोक टोक मान मर्यादा की
न मैं चिन्ता करने वाला
आवारगी में रहता मैं हर वक्त
ना अपनी चिंता करूँ
ना करूँ किसी ओर की

मिले जन्म धरती पर मुझे
तोता मुझे बनाना
बैठ जाऊँ ऊँची डाल
फिर न बुलाना
मैना से ब्याह रचाऊँ
ना कोई दीवार जाँति-पाँति की हो
ना कोई भेदभाव हो
न कोई ढोंग दिखावा हो
न मजहब के नाम पर
कोई खून खरावा हो
बस एक इन्सानियत का रिश्ता हो
जीवन का अटूट बन्धन हो

डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
74 Likes · 318 Views
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