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22 Jul 2017 · 5 min read

….आवारा….

आवारा
……………..
गजब का रोस था वहा की फीजा में, हर शख्स का चेहरा तमतमाया हुआ था। जिसे देखो वहीं कुछ भी कर गुजरने को आमादा।
इन्हें देख कर प्रथम दृष्टया यही दृष्टिगोचर हो रहा था कि कुछ ही पलो में यहाँ कोई बड़ी घटना घटित होने को है।
किन्तु स्पष्टतः यह पता नहीं चल पा रहा था आखिर माजरा क्या है?
हाँ एक दो लोगों को कहते अवश्य ही सुना गया आने दो आज छोड़ेंगे नही, फैसला हो कर रहेगा।
उधर शरद रश्मि को लेकर अस्पताल पहुंचा जहां उसके पिता जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रहे थे। स्थिति नाजुक थी आपरेशन के लिए डाक्टर ने ब्लड मांगा था ।रक्त दान इससे बड़ा शायद ही कोई और दान होता है। किसी को जीवन देना तो ईश्वर का काम है किन्तु उसे मौत के मुह से वापस बचा लेना यह भी बहुत बड़ी बात है।
शरद रश्मि को वार्ड में उसके पिता के पास छोड़ वहाँ से निकल गया।
तकरीबन एक घंटे बाद शरद अपने कुछ स्कूली दोस्तों के साथ पुनः अस्पताल पहुंचा। रक्त दान की सारी प्रक्रिया पूरी कर अपने बारी का इंतजार करने लगा।
इधर रश्मि का बुरा हाल था अपने पिता को इस अवस्था में देख उसके नेत्र सजल हो चले थे। आंखों से अश्रू सुखने का नाम नहीं ले रहे थे।
रश्मि के पिता रेलवे में खलासी का कार्य करते थे डीउ्टी से आते वक्त किसी बाइक सवार ने उन्हें ठोक दिया था, वे बीच सड़क पे लहुलुहान पड़े थे , सभी राहगीर तमाशबीन बन कर तमाशा देख रहे थे; किन्तु कोई मदद को आगे नहीं आ रहा था।
यह कैसी विडंबना है, कैसे दकियानुसी विचारधारा वाला समाज है हमारा, कोई घायल अवस्था में बीच सड़क पर पड़ा मौत से जद्दोजहद कर रहा होता है और हम इस डर से कहीं पुलिस केस न बन जाये, हम किसी बड़े परेशानी में न पड़ जायें ; यह सोच कर उसे मृत्यु का आवरण करने को ऐसे ही छोड़ तमाशबीन बन तमाशा देखते हैं।
यहाँ भी हालात कुछ ऐसे ही थे तभी शरद उधर से गुजरा और भीड़ देख रुक गया। बाइक साइड में लगाकर वह भी यह देखने के लिए भीड़ को चीरता हुआ अंदर दाखिल हुआ।
घायल को लहुलुहान इस अवस्था में देख विस्मय से उसकी आंखें चौंधिया गईं।स्तब्ध रह गया; अरे ये तो रामलाल काका है ।
रामलाल महतो शरद के गांव के ही थे। रामलाल और उनकी बेटी रश्मि बस दो ही जनों का छोटा सा परिवार अपनी पुस्तैनी जमीन के नाम पर कुछ भी नहीं था उनके पास बस रेलवे की नौकरी से ही जीवन यापन होता था।
उन्हें इस अवस्था में देख शरद कुछ लोगों की मदद से अस्पताल तक लेकर आया ।
यह बातें रश्मि को अस्पताल में आकर हीं पता चली।
शरद गांव के पुरोहित श्री श्यामा चरण मिश्रा जी का बीगड़ैल लड़का जिसे शायद ही गांव की कोई लड़की पसंद करती हो।
पूरा पूरा दिन आवारा लड़कों के साथ आवारागर्दी करना , राह चलती लड़कीयों को छेड़ना उनपे फत्बीया कसना , राहगीरों को गलत राह पर भेज मजे लेना, अपने से उम्र में बड़े लोगों से धृष्ठता पूर्ण लहजे में बात करना उसके रोजमर्रा के आदत में सुमार थी।
आज उस लड़के का यह रुप देख रश्मि कृत्य-कृत्य हो गई थी, आज शरद के प्रति उसके हृदय में अथाह सम्मान व प्रेम अंकुरित हो चूका था । उसे वह किसी मसीहे से कदापि कम नजर नहीं आ रहा था।
समय से प्रयाप्त मात्रा में ब्लड मिल जाने के कारण रामलाल का आपरेशन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ डाक्टर ने उन्हें खतरे से बाहर बताया।
इधर गांव में जैसे- जैसे समय बीत रहा था अफवाहें चरम को स्पर्श कर रहीं थी। रोश तो अभी भी था किन्तु समय बितने के कारण लोग अधीर होने लगे थे।
इधर तीन दिन बीत गये पर शरद रश्मि को अकेला अस्पताल में छोड़ घर जा न सका।
समय अपनी गति से बीतता रहा और रामलाल धीरे- धीरे स्वस्थ होने लगे ।
एग्यारहवे दिन रामलाल को अस्पताल से छुट्टी मिली वह भी साठ हजार रूपए जमा कराने के बाद।
इतना पैसा उस वक्त रश्मि के पास नहीं था आधे से कुछ अधिक पैसे का ईन्तजाम शरद ने अपने पापा के बैंक में रखे पैसे को निकाल कर किया था। कारण उसके पापा का ए.टी.एम कार्ड उसी के पास रहता था और जरूरत पड़ने पर घर के लिए पैसे निकालने का काम वहीं करता था।
छुट्टी मिलने के बाद रश्मि उसके पिता एक आटो से और शरद अपने बाइक से गांव के लिए प्रस्थान किये।
रश्मि और उसके पिता पहले गांव पहुंचे, लोगों का हुजूम उनके दरवाजे पर लग गया यह जानने के लिए कि रश्मि शरद के साथ मुह काला करने काहां गई थी।
लेकिन वहाँ पहुंचने के उपरान्त लोगों को जब सारी हकीकत पता चली तो सभी के सर शर्म से नीचे झुक गये।सभी सोचने को मजबूर हुऐ की बीना स्थिति का सही आकलन किए, बिना सत्य जाने हम सभी ने क्या कुछ नहीं सोच लिया। वैसे यह स्थिति केवल एक शरद के गांव की नहीं अपितु हर एक गांव की, हर एक शहर, गली, मुहल्ले की है।
शरद के प्रति गांव के हर व्यक्ति के मन में सम्मान का भाव था तो वहीं रश्मि के प्रति प्रेम और दया का।
शरद कुछ काम जिस कारण उसे गांव आने में देर हुई थी निपटा कर साम को सीधा अपने घर पहुंचा और अपने पिता के पैरों में गीरकर माफी मांगने वाले लहजे में बोला।
शरद:- पापा मैने आपके एकाउंट से तकरीबन पचास हजार रुपये निकाल कर रामलाल चाचा के इलाज में खर्च कर दिये है मुझे माफ कर दीजिये। मै आपको आश्वस्त करता हूँ कि आज से अब कोई आवारागर्दी नहीं होगी मैं कल से ही अपने लिए काम ढूँढ कर करना शुरू करूंगा और वो सारे पैसे पुनः जमा करूंगा।
मिश्रा जी की आंखें भर आईं, शरद को गले लगा कर बोले।
बेटा जब तक तुमने अपना और मेरा सर शर्म से नीचा करने वाला कार्य किया कभी माफी नहीं मांगी और आज जब तुमने मेरा सर फक्र से ऊचा कर दिया है तो माफी मांग रहा है। पैसों का क्या है वो तो फिर से आ जायेंगे।
कुछ दिन गये रामलाल अपनी बिटीया रश्मि के साथ शरद के घर पहुंचे। मिश्रा जी ने उन्हें बीठाया और पूछने लगे
कैसे आना हुआ रामलाल?
रामलाल कृतज्ञता प्रकट करते हुये बोले
गुरू जी एक तो आपके जो पैसे शरद बाबू ने मेरे उपर इलाज में खर्चे थे वो वापस करने है और दुसरी किन्तु अहम बात यह है कि आज रक्षाबंधन के दिन बिटीया शरद बाबू को राखी बांधने की जिद्द कर रही थी सो आ गया।
तभी वहाँ शरद भी आ पहुंचा।
रश्मि ने शरद को रोली का टीका लगाया , ममतामयी हाथों से आरती किया स्नेहिल नजरों से देखते हुये राखी बांधा और मुह मीठा कराया।
शरद ने रामलाल चाचा जो पैसे मिश्रा जी को देने लाये थे उनसे लेकर रश्मि के थाल में रख दिया और बोला,
चाचा ये पैसे मेरी बहन के हुये पापा को मै कमा कर दूंगा। इस पैसे से मेरी बहना जो लेना चाहे उसे दिलाना।
रश्मि भिगी पलकों को छिपाते हुये शरद से लिपट गई।
उसके सर पे दुलार भरा हाथ फेरते हुऐ शरद बोला।
अरे पगली रोती क्यों है आज से तेरा यह धर्म भाई हर मोड़ पर तेरी रक्षा करेगा।
©®पं.संजीव शुक्ल”सचिन”
रक्षाबंधन की सभी भाई बहनों को अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं।
…………………….।…..।।।…।
दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी अवश्य बतायेगे।
आपका मार्गदर्शन पाकर मैं शायद आगे कुछ और अच्छा लिख सकूँ।
धन्यवाद।
आपका मित्र
पं.संजीव शुक्ल”सचिन”

Language: Hindi
385 Views
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