” आवारा बादल हुई है ” !!
याद करवट ले चुकी जो ,
चाह में पागल हुई है !!
रात काटे से कटे ना ,
पल पल ठगी करने लगे !
सपन जागे हुए अपने ,
अपने हँसी करने लगे !
इक कहानी फिर लिखी जो ,
आवारा बादल हुई है !!
जो बुना हमने रचा है ,
समय की अठखेलियाँ हैं !
रंग पसरा और बिखरा ,
बढ़ गई नज़दीकियां हैं !
खुशियाँ सतरंगी सजीली ,
लहरता आँचल हुई है !!
फिर जगा , जुड़ता गया है ,
मेल यों अपना अनूठा !
थम गयी बैचेन नज़रें ,
जो मिला ना जाए छूटा !
सुरमई सांझों की झलकी ,
नशीला काजल हुई है !!
स्वरचित/ रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर (मध्यप्रदेश )