आवारा पंछी / लवकुश यादव “अज़ल”
आईने के दर्पण के जैसे था प्यार हमारा,
तिनका तिनका बिखरा जैसे घड़ा सारा।
हम समेट लेते फिर से तुम्हें बाजुओं में,
पानी जैसा था प्यार हाथ न आया दुबारा।।
अश्क़ मोतियों को संभाल कर रखते भला कब तक,
कमबख्त जब सूख गया तो फिर नहीं आया दोबारा।
हर दर्द को सहना सीख ही गया बिना किसी मुराद के,
वो वक़्त था कैसा की लौट के फिर न आया दुबारा।।
तुम्हारी प्रेम की गली अधूरी हो गयी सुनो बेखबर,
एक मुसाफिर न आया तुमसे फिर तुमसे मिलने दुबारा।
हम समेट लेते फिर से तुम्हें बाजुओं में,
पानी जैसा था प्यार हाथ न आया दुबारा।।
मुमकिन था संभल गया तुम्हारा वो अज़ल इशारा,
कैसे करता सजदा और प्यार वो तुमसे दोबारा।
अश्क़ मोतियों को संभाल कर रखते भला कब तक,
कमबख्त जब सूख गया तो फिर नहीं आया दोबारा।।
लवकुश यादव “अज़ल”
अमेठी, उत्तर प्रदेश