आवारा चांद
तुमसे बिछड़ के तुम्हारा चांद
थोड़ा और हुआ आवारा चांद
रोज़ कभी यहां तो कभी वहां
फिरे जैसे कोई बंजारा चांद…
(१)
जो कभी हम मिले हैं ख़्वाबों में
तो कभी हम मिले हैं ख्यालों में
रात भी अधूरी-बात भी अधूरी
इक अधूरी प्यास का मारा चांद…
(२)
काली नागिन बनी है तनहाई
कहीं सिसक रही है शहनाई
हर पल बीते एक सदी के जैसे
अब कैसे होगा गुज़ारा चांद…
(३)
कुछ ऐसे ही जज़्बात थे मेरे
कुछ ऐसे ही हालात थे मेरे
मैं बाक़ी सबसे जीता लेकिन
अपने आप से ही हारा चांद…
(४)
देख तो लो अपने छत पे आके
या खिड़की से ही पर्दा हटाके
कौन जाने कि आए न आए
तुम्हारी गली में दोबारा चांद…
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Shekhar Chandra Mitra
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