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24 Apr 2021 · 1 min read

आवाम मांग रही है हिसाब

** आवाम मांग रही हिसाब **
************************

आवाम मांग रही है हिसाब,
कहाँ गुम हो गई खुली किताब।

कहीं न दिखते पुराने तेवर,
डूब गया है आज आफताब।

वादे , इरादे थे पहाड़ से,
मर चुकी है वो दहाड़ जनाब।

काल का रूप हो विकराल,
सुहाना मौसम होता खराब।

जाते जाते आदमी जाता रुक,
जूते में रह जाए है पड़ी जुराब।

खुदा का जब बजता है डंका,
पर्दा हो जाता है बेनकाब।

ले जब प्रकृति रौद्र रूप धार,
समाप्त हो जाता अहम,इताब।

न हो झूठ सहारे नैया पार,
अंत में जनता माँगती जवाब।

मत गर्व कर चाँदनी पर कभी,
मेघों में छिप जाता महताब।

मनसीरत तोल के सदा बोलो,
बोल का मोल देना है साहब।
***********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
1 Comment · 416 Views
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