आवाज
उसकी रुसवाई ही थी जो कलम ने
सचबयानी को मजबूर कर दिया।
मस्तमलंग फिरता रहा अब लेकिन
खुद पर खुद को मगरूर कर दिया।
चोट दी हुयी उसकी यूँ दिलों मे कर गयी घर,
कलम से निकली आवाज-ए-दर्द-ए-दिल
और मेरी गजल को मशहूर कर दिया।
उसकी रुसवाई ही थी जो कलम ने
सचबयानी को मजबूर कर दिया।
मस्तमलंग फिरता रहा अब लेकिन
खुद पर खुद को मगरूर कर दिया।
चोट दी हुयी उसकी यूँ दिलों मे कर गयी घर,
कलम से निकली आवाज-ए-दर्द-ए-दिल
और मेरी गजल को मशहूर कर दिया।