आवाज
इस मौन क्षुब्ध ह्रदय से इक आवाज़ निकलती
मन को झंझावत कर असीम वेदना गरजती
रह रहकर इक चिनगारी है सुलगती
क्यों विकल रुप धारण कर महामारी पांव पसारती
सब विस्मित हो रह जाते भ्रमित यहां
सूक्ष्म रुप विषाणु ने किया उपद्रव जहांन
मानवता पर बन संकट आया है
महाकाय रुप में मानों कोई दैत्य आया है
सब ओर हाहाकार स्वरों में मची है
संयम और एकता की दीवार खड़ी है
इस मकड़जाल से निकलना जल्द है
भारत की पहचान बनाना दृढ़ संकल्प है
कठिन विपत्ति में भी विश्वास जिसका अटल रहा
वहीं वीर है जो डटकर यहा खड़ा रहा
यह विषाणु है जिस पर संशय बना भारी है
भारत बन शक्ति उभरे आई जैविक युद्ध की बारी है