आवाज
आवाज
अनसुनी मेरे दिल की आवाज
पिजरबद्ध पखेरु,बिन परवाज
विलम जरा तुम देते जो ध्यान
खंडित न होता प्रिय मेरा मान
घुटकर जख्म और गहरा हुआ
व्यर्थ चीखना,बलम बहरा हुआ
बरसता मेघ मन में ठहरा हुआ
तिरष्कृत-ताप कबसे भरा हुआ
ढुल ढुल मोती रहे बिखर यहाँ
तुझको इसकी पर फिकर कहाँ?
काश इन मोतियों को तुम चुनते
नेह के धागों में पिरो रिश्ते गुनते
आओ,मिल सपने सतरंगी बुन ले
निर्मोही,दिल की आवाज सुन ले
-©नवल किशोर सिंह