*आवाज दे रहा वो*
आवाज दे रहा वो,पड़ा जो धरती के तल।
घर में गरीव के भी , दीप वारता तू चल ।।
उजाला हो गया ,मग़र क्यों अँधेरी रात है
सोचनीय इस प्रश्न का भी,खोजिये न हल।।
बड़ी मुशिकल में हैं , दो जून की रोटियां
धुंआ भी निकला मेरे , ये कह रहा है कल।।
अश्थियां जम गईं हैं , सहते हुईं शर्दियाँ ये
कटतीं हैं बर्फीली रातें , लेटे कुहनियों के बल।।
मधुमास आके यों ही , बीत जाते है वो
पर कहाँ मिलते हैं वो ,उसे सुहाने से पल।।
मौन पी गया वो, शब्दों की पल्टन सारी
टिक जाती हैं आँखे रुकके,मन जाता है गल।।
वे दिखते हैं खुशनजर , अपने ही आप में
जरा आके सच्चाइयों को, पटल पे उगल।।
थक सी गई हैं आँखे , दर्दों को गाते गाते
फूटी हुई किस्मत को , अब् डालो ना बदल।।