आवत हिय हरषै नहीं नैनन नहीं स्नेह।
आवत हिय हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह।।
कहते है सज्जन मानुष का पेट भले ही भूखा क्यों न रह जाए मगर प्रेम और आदर, सम्मान भाव मात्र से वह संतुष्ट रहता है,और जहाँ प्रेम भाव नहीं वह स्थान उसके लिए त्याज्य होता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस स्थान पर लोग आपके आने से प्रसन्न न हो और जहां लोगों की आंखों में आपके लिए प्रेम अथवा स्नेह,आदर न हो ऐसे स्थान पर भले ही धन की कितनी भी बर्षा ही क्यों न हो रही हो आपको वहां नहीं जाना चाहिए। अर्थात कोई भी ऐसा स्थान जहां पर अपार धन संपदा हो ,संपूर्ण भव्यता हो ,आलीशान वस्तुएं हो परन्तु वहां आपका मान सम्मान न हो और वहां आप के प्रति किसी के हृदय में प्रेम भाव पैदा न हो आपका कोई स्वागत न करें और मित्रता का भाव भी न हो ऐसी जगह पर हमें नहीं जाना चाहिए।वास्तव में मनुष्य का आचार व्यावहार ही निर्णय बिन्दू पर ठहर कर सही आंकलन कर ही परिणाम तक पहुंचता है। मनुष्य की तार्किक शक्ति की प्रबलता उसे वैचारिक संयोगता प्रदान करती है। जो आत्म सम्मान के लिए आत्म परीक्षणार्थ सोचने समझने की ताकत बनती है।
हमारे इतिहास के पन्ने अनेकों उदाहरणों से भरे है –महाभारत में भगवान कृष्ण ने दुर्योधन के महल के पकवानों को छोड़कर विदुर के घर साग भाजी खाई थी ।दुर्योधन में अंह भाव कूट कूट कर भरा था, उसके द्वारा परोसा जाने वाला आतिथ्य भाव भी उससे अछूता नहीं रह सकता था।इसके विपरीत महान विदुर का निष्छल प्रेम और सत्कार भाव ग्राह्य था। भगवान कृष्ण यह सब जानते थे, इसीलिए उन्होने अंहकारी ,कपटी और मलिन हृदय भाव का त्याग किया था और सरल हृदय मगर विधि नायक के घर प्रेम सत्कार से भरपूर सादा भोजन किया ।
एक अन्य उदाहरण में जब गुरु नानक देव जी ने एक अमीर व्यापारी मलिक भागों के पकवान ठुकरा कर एक गरीब ‘भाई लालो जी’ के घर भोजन ग्रहण किया था ।
महाकवि रहीम ने भी अपने दोहों के माध्यम से समाज में यही सीख हमेशा दी है कि जहाँ छल कपट और बेईमानी से कोई अपना मतलब निकालना चाहे, वहाँ न ही मेहनत की और न ही मेहनती व्यक्ति की कदर होती है। ऐसे लोगों से नाता जोड़ना कभी भी श्रेयकर नहीं रहता। इसीलिए ऐसे स्थान का त्याग कर देना चाहिए।
इससे यह सीख मिलती है कि जिस स्थान पर आप का सत्कार न हो आपको यथोचित सम्मान न मिले ऐसे स्थान पर व्यक्तियों के हृदय के भाव शुद्ध कभी नहीं हो सकते।ऐसे स्थान पर कदापि नहीं जाना चाहिए ।
शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश