आल्हा
आल्हा – युग्म गीतिका
हम हैं वीर शिवा के वंशज ,राणा की हम हैं तलवार |
अरि का शीश काटने को अब ,मचल रही है इसकी धार |
दुश्मन से भयभीत न होंगे क्षण में होगा उसका नाश –
टिक न सकेगा नीच कोई अब खल पामर कपटी मक्कार |
सच्चाई के रहे उपासक , हमने चाही शान्ति अटूट –
इसी लिये तू बचा हुआ है , मान हमारा यह उपकार |
ओ मूरख नादान सम्भल जा ,हरकत से अब आजा बाज –
बच्चा – बच्चा राम यहाँ का , नहीं शक्ति का पारावार |
बढता जाता है उत्पीड़न , अब न सहेंगे हम अन्याय –
दहक उठी है मन में ज्वाला , अब होगा तेरा संहार |
रण बाँकुरों जवानो सुनलो , करदो खुल कर अब ऐलान –
बार – बार अब नहीं सहेंगे ,तेरा यह आतंकी
वार |
मंजूषा श्रीवास्तव