आलोचना
आलोचना”
चर्चा और आलोचना का तो गहरा रिश्ता है,
भिन्न मत होना तो लोकतंत्र की विशेषता है ।
लेकिन आज का दौर लोकतंत्र को शर्मिंदा करता है,
आलोचना तो दूर आमजन बोलने से भी डरता है ।
उनकी तो बेबुनियाद आलोचना भी सही है,
आज सत्ता से सवाल पूछने की फ़िज़ा नहीं है ।
जो बोल दिया वो करो उससे आगे सोचना नहीं,
हां में हां बोलो सरकार की आलोचना नहीं ।
वो निरंकुश हो कर जो करते हैं करने दो,
जो आलोचना में कुछ बोले देशद्रोही है वो ।
राजनेताओं की ये ओछी और घटियापन की दौड़,
वो पल भर में देते हैं दूसरों के सिर ठीकरा फोड़ ।
समस्या की पहचान व समाधान से सरोकार नहीं,
इन कामों के लिए आमजन हैं, सरकार नहीं ।
आज देश की राजनीति में नए कीर्तिमान बन रहे हैं,
राजनेताओं के हथियार एक दूसरे पर तन रहे हैं ।
हमें क्या, दर्द को वही जाने जिस तन बीती है,
देश में अजीब शर्मनाक राजनैतिक स्थित है ।
सुधार में सहायक होते हैं आलोचना और भिन्न मत,
हर सुझाव व आलोचना हैं लोकतंत्र की जरूरत ।
निरंकुश होना तो अधिनायकवाद है लोकतंत्र नहीं,
इसमें तो तानाशाही पुष्ट होती है गणतंत्र नहीं ।