आलोचना – अधिकार या कर्तव्य ? – शिवकुमार बिलगरामी
कई बार हम टीवी और सोशल मीडिया पर लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि सरकार की आलोचना करना हमारा अधिकार है …और यह सच भी है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत सरकार की आलोचना की जा सकती है । लोकतांत्रिक संविधानों में यह व्यवस्था इसीलिए की जाती है कि इससे तंत्र की कमियों को उजागर किया जा सके और सत्ताधारियों द्वारा निरंतर लोकहित में निर्णय किये जा सकें । किन्तु , लोकतंत्र नागरिकों को सिर्फ अधिकार… और अधिकार नहीं देता , अपितु उनसे जिम्मेदार और कर्तव्य परायण नागरिक बनने की भी अपेक्षा रखता है ।
सरकार की आलोचना अच्छी बात है लेकिन आलोचना करने वाले व्यक्ति की भी अपनी कुछ मर्यादाएं हैं । वही आलोचक श्रेष्ठ और मान्य होता है जो सरकार के निर्णयों और कार्यों की कमियों के साथ-साथ उनकी अच्छाइयों पर भी प्रकाश डाले । लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लगातार यह देखने में आ रहा है कि आलोचकगण अपनी मर्यादाएं लांघ रहे हैं । उनकी आलोचनाएं कार्य केंद्रित न होकर व्यक्ति केंद्रित होती जा रही हैं । अब वह सरकारों और संस्थाओं द्वारा लिए गए निर्णयों अथवा किए गए कार्यों की समीक्षा नहीं करते अपितु सरकारों और संस्थाओं का नेतृत्व कर रहे व्यक्तियों पर निशाना साधते हैं । उनका चरित्र हनन करते हैं और उनके लिए अभद्र और अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हैं । यह एक बहुत ही दुखद और दयनीय स्थिति है । एक सौ चालीस करोड़ की जनसंख्या वाले देश में , जहां लोग इतनी अधिक जातियों , उपजातियों , समूहों , उप-समूहों, धर्मों और संप्रदायों में विभाजित हैं , वहां सरकार चाहें कोई भी निर्णय ले , कुछ न कुछ लोग उससे आहत और असंतुष्ट रहेंगे । लेकिन असंतुष्ट होने और आलोचना करने का तात्पर्य यह कतई नहीं कि नेतृत्व करने वाले व्यक्तियों का चरित्र हनन किया जाए और उनके प्रति अभद्र और अमार्यादित भाषा का प्रयोग किया जाए । आखिर वह लोग भी हम सबके बीच से चुने हुए लोग हैं और उन्होंने किसी न किसी स्तर पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है , तभी वह शीर्ष पर हैं ।
वर्तमान में आलोचना करने वाले अधिकतर लोग न केवल तंत्र के नियम – कानूनों से अनभिज्ञ और अपरिचित हैं अपितु उनका साधारण ज्ञान भी अति साधारण है । अच्छे से अच्छे व्यक्ति में कुछ न कुछ कमियां और बुरे से बुरे व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाइयां होती हैं । अच्छा और सच्चा आलोचक वही है जो अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहे । किसी के हरेक कार्य को अच्छा अथवा बुरा बनाकर पेश करना आलोचक का कार्य नहीं हो सकता । जब हम किसी व्यक्ति के कार्यों की आलोचना न करके उस पर व्यक्तिगत रूप से निशाना साधते हैं तब हम उसकी उन तमाम अच्छाइयों को दरकिनार कर देते हैं जिनके कारण वह शीर्ष पर है । एक समालोचक सदैव व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्यों की समीक्षा करता है न कि उनके चरित्र का पोस्टमार्टम । कार्य आधारित आलोचना के कारण ही विगत में आलोचकों की बातों को समाज और सरकारों द्वारा ध्यान से सुना जाता था और उनका आदर किया जाता था । एक निष्पक्ष आलोचक को समाज में सदैव सम्मान और आदर की दृष्टि से देखा गया है । लेकिन वर्तमान में आलोचक स्वयं कटघरे में हैं और उनकी साख दांव पर लगी हुई है। कोरी आलोचना के बजाय आलोचना करने वाले व्यक्ति अपने कार्यों से समाज के समक्ष बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करें।
आलोचना का मतलब सिर्फ शब्दबाण चलाना नहीं है अपितु अपनी अच्छाइयों और कार्यों के माध्यम से अपने प्रतिद्वंदियों से बड़ी लकीर खींचना ही श्रेष्ठ और स्वीकार्य आलोचना है ।
— Shivkumar Bilagrami