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5 Sep 2023 · 3 min read

#आलेख

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■ समय सा अनुशासित हो शिक्षक
【प्रणय प्रभात】
शिक्षक वो जो शिक्षा दे। शिक्षा वो जो विनम्रता दे। पात्रता और समृद्धि दिलाए। अलौकिक शिक्षक है केवल समय, जो जीवन भर शिक्षा देता है। चाहे वो बुरा हो या भला। समय एक समर्थ शिक्षक की भांति पग-पग पर शिक्षा व अनुभव दे कर परिपक्व बनाता है। समय का लौकिक स्वरूप ही शिक्षक है। जो जीवन रूपी भवन की नींव रखने से लेकर शिखर तक निर्माण व सज्जा तक अपनी भूमिका निभाता है। एक सामर्थ्यवान व अनुशासित शिक्षक के रूप में। जो हर शिक्षक को अपने जैसा बनने के लिए हर दिन नहीं हर क्षण प्रेरित करता है।
हमारी संस्कृति में प्रथम शिक्षक मां को माना जाता रहा है और इस दृष्टिकोण से प्रत्येक शिक्षक को मातृत्व गुण से युक्त होना चाहिए। मां के बाद शिक्षक ही है जिसकी गोद में निर्माण व प्रलय दोनों पलते हैं। सूर्य व चन्द्रमा की तरह बिना भेदभाव शिक्षा रूपी किरणें बांटने वाला शिक्षक आज भी देश की भावी नागरिक पीढी गढ़ने वाला शिल्पकार है। संसार में जितनी महान विभूतियां हुई हैं, उन सबके पीछे एक ही शक्ति रही है। जिसे गुरु कहा जाता है। इसी गुरु का एक प्रतिनिधि शिक्षक है। फिर चाहे वो मां हो या शालेय शिक्षक।
समर्थ गुरु रामदास, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, कौटिल्य, स्वामी हरिदास, स्वामी नरहरि दास, स्वामी रामानंदाचार्य से लेकर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, मिसाइल मैन डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम साहब तक तमाम उदाहरण हैं जो एक शिक्षक की महत्ता को रेखांकित करते हैं। देश की प्रथम महिला शिक्षक के रूप में सावित्री बाई फुले व शिक्षा क्रांति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा राव फुले का जीवन आज भी एक बड़ी मिसाल है।
समाज व समुदाय को यदि किसी ने समझ, सदाचार व अनुशासन का मंत्र दिया है तो वो एक शिक्षक ही है। यह बात हर शिक्षक को गौरव के साथ याद रखना चाहिए ताकि उसे अपनी गरिमा व गुरुता का स्मरण बना रहे। जिस पर महानतम गुरु शिष्य परम्परा निर्भर करती है। तंत्र को भी चाहिए कि वो शिक्षक-विरोधी षड्यंत्र, नौकरशाही रचित प्रयोगात्मक कुचक्र व दमन पर विराम लगा कर शिक्षा की दशा व दिशा विचारवान शिक्षकों को एक सुनियोजित व सुनिर्धारित व्यवस्था के अनुसार तय करने दे।
कथित शिक्षक दिवस के नाम पर दिखावे के आयोजन तब सार्थक हैं, जब शिक्षक का सम्मान 365 दिन सुनिश्चित हो। चहेतावादी सिस्टम और चाटुकारिता-पसंद अफ़सरों व नेताओं की जमात कागज़ी प्रमाणपत्रों से लेकर बड़े सम्मानों तक की चयन प्रक्रिया से दूर रखी जाए। शिक्षक सम्मान के मापदंड विधिवत तय हों। ताकि कोई सम्मान स्वयं को अपमानित या आहत अनुभव न करे। शैक्षणिक संस्थानों को सियासी नुमाइंदों का दंडक-वन बनने से रोका जाए। शिक्षकों की भूमिका नीति-निर्माता व नियंत्रक के रूप में स्वीकार की जाए। जिस पर राजनैतिक व संगठनात्मक छुटभइयों को न हमले की छूट हो, न हस्तक्षेप का अधिकार। यदि यह संभव नहीं तो शिक्षल दिवस जैसे किसी उपक्रम या आयोजन के कोई मायने नहीं।
बहरहाल, समय की तरह निष्ठा, क्षमता, समर्पण व अनुशासन जैसे श्रेष्ठ गुणों के साथ अपना दायित्व निभाने वाले प्रत्येक शिक्षक को शिक्षक दिवस की बधाई। जो उक्त गुणों से परे हैं, उन्हें एक अदद पद, वेतन और थोथा रसूख मुबारक। इस प्रजाति के जीवों से सिर्फ़ आग्रह किया जा सकता है कि मां शारदा के मंदिर को अपवित्र व कलंकित न करें। विद्यालय परिसरों को जाति, भाषा, क्षेत्र, विषय या व्यवसाय के आधार पर क्षुद्र व कुत्सित राजनीति का अखाड़ा न बनाएं।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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