“आलिंगन प्रेम का”
स्पर्श में चाँदनी
हवाएं जो छुने से पहले आती हों; दूर समंदर को लांघ
क्षितिज जिन्हें हर रोज चुमते हों सितारें
गगन में देख शक्ल
मतवाली हो उठती हो शाम
हल्की मंद चमकती लाल रोशनी
जिसकी थिरकन पर सुरज हर दिन लिखता है
साँझ के दमकते आगमन पर
ईक विरह गीत
सुबह मिलने का वादा
फिर वही दमकती आभा
उम्मीद की वही किरण
विश्वास लिये जागरण
कर्म का आवरण
निश्चय एकांत
एकाग्र में प्राण
दमकता मस्तक
कुल की आन
बुनता है स्वप्न
करता है प्रेम
आये जो मौत…..कहता है मन
रुकना अभी……तपती शीला पर निश्चल है मौन
☁️
लौटो अभी तुम
कार्य है शेष
हृदय है लीन
तुमने सुना है कभी ?
मैं सुनती हुँ ऐसे ही गीत
जहाँ अभय लिखता है; आलिंगन प्रेम का…☀️
© दामिनी?️