आलिंगन कर, चुंबन कर,
आलिंगन कर, चुंबन कर,
मन सहज कहे,
शायद अभी भी विरह है l
ये भारी भारी आंसूओं की बूँदें,
क्यों, भर भर रही गिरह है ll
खुशी में आंसू टपके टपके ,
दुःख में भी आंसूं बरसे बरसे l
यही तो भारी असमंजस कसमकस
प्यार में, भीतरी जिरह है ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न