आर या पार (छोटी कहानी)
आर या पार (छोटी कहानी)
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सावित्री का चेहरा सूजा हुआ था। जगह-जगह लाल- नीले निशान पड़े हुए थे ,जो बता रहे थे कि कुछ देर पहले क्या हुआ होगा।
मायके से सावित्री का भाई आया था और अपनी बहन के चेहरे पर यह निशान देखकर भौचक्का रह गया। बहुत गुस्सा आया। पूछा” यह क्या है ? कैसे हुआ ? किसने किया?”
सावित्री ने कोई जवाब नहीं दिया। पानी का गिलास भाई की तरफ बढ़ाया ।
कहा” पानी पियो ”
भाई बोला “मेरी बात का जवाब दो !”
सावित्री बोली “बात बढ़ाने से कोई फायदा नहीं । कल तुम्हारे जीजा जी जब खाने बैठे तो उन्हें खाने में नमक कुछ ज्यादा लगा । बस इसी बात पर मार- पिटाई शुरू कर दी ।”
भाई भड़क गया “आजकल के जमाने में क्या कोई औरतों से ऐसे सलूक करता है?”
बहन बोली “आजकल के जमाने में ही यह सब हो रहा है। मर्दों का कहना है कि औरतें पिटाई की भाषा ही समझती हैं। ऐसे ही ठीक रहती हैं ।”
“तुम विद्रोह क्यों नहीं करती ?”
“क्या होगा इससे ?-“सावित्री का जवाब था।
“तुम पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं करती?”
” परिवार टूट जाएगा ?”
“और अब क्या बिखरा हुआ नहीं है ?अब क्या कम टूटा हुआ है ? अपने चेहरे के निशान देखो ! क्या जिंदगी भर इन्हीं को लिए हुए रोती रहोगी ?”
सावित्री ने कोई जवाब नहीं दिया। रसोई में चली गई ।भाई गुस्से में तमतमाता रहा। जीजा आए तो सीधा सवाल दाग दिया-” मेरी बहन को अगर हाथ भी लगाया तो ठीक नहीं होगा।”
सुनते ही जीजा भड़क गए “ओह !अब बहन के भाई के पर निकलने लगे ! क्या कर लोगे मेरा ! जाओ बहन को उठाकर ले जाओ ।”
“जीजा आपने सही नहीं समझा। मेरी बहन कहीं नहीं जाएंगी। वह इसी घर में रहेंगी, क्योंकि वह घर की मालकिन हैं। हां ! आपको जरूर जेल जाना पड़ेगा ।सोच लीजिए ! आप तो समझदार हैं । पढ़े लिखे हैं। सरकारी नौकरी करते हैं।”
” मुझे धमका रहे हो ।”
“बिल्कुल धमका रहा हूँ। आपकी सरकारी नौकरी चली जाएगी ।”
जीजा समझदार था ।थोड़ी ही देर में उसने हथियार डाल दिए। बोला “अपनी बहन को समझाओ । घर गृहस्थी में ध्यान दे। मैं जानबूझकर थोड़े ही मारता हूँ।”
“चाहे जानबूझकर मारो ,चाहे बगैर जानबूझकर मारो ,लेकिन अब आज से हाथ नहीं उठना चाहिए । वादा करते हो तो मैं जाऊँ, वरना यहीं रह कर आगे की कार्यवाही करूँ।”
जीजा डर गया ।बोला “अब हाथ नहीं उठाऊँगा ।”
रसोई के दरवाजे की आड़ में खड़ी सावित्री ने जब यह सुना, तो खुशी से उसकी आँखों में आँसू आ गए ।लेकिन थोड़ी सी धुकर-पुकर भी मन में बढ़ रही थी कि देखो आगे क्या होता है । फिर सोचने लगी, चलो ठीक ही हो रहा है। जो होगा,अच्छा ही रहेगा। या तो आर या फिर पार। इस रोज-रोज की मार- पिटाई वाली जिंदगी से तो बेहतर रहेगा ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451