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9 Mar 2022 · 4 min read

आर्य समाज, पट्टी टोला ,रामपुर का 122 वां वार्षिकोत्सव*

धूमधाम से मनाया गया आर्य समाज, पट्टी टोला ,रामपुर का 122 वां वार्षिकोत्सव
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रामपुर का आर्य समाज अपना गौरवशाली इतिहास 1 सितंबर 1898 से उत्साहपूर्वक सँजोए हुए हैं ,जब इसकी स्थापना रियासत काल में प्रबुद्ध जनों ने की थी । तब से वैदिक संस्कृति का ध्वज आर्य समाज के माध्यम से गगन में लहरा रहा है। प्रतिवर्ष आर्य समाज अपना वार्षिकोत्सव मनाता है । पट्टी टोला की गली समूचे रामपुर को धन्य कर देती है । इस बार 122 वां वार्षिकोत्सव था तथा गुधानी (बदायूं) से श्री संजीव रूप जी वेद कथाकार के रूप में वार्षिकोत्सव में पधारे थे । पाँच दिन आपकी वेद कथा चली । 5,6,7,8,और 9 मार्च 2021 प्रातः तथा रात्रि 8:00 से 10:00 बजे तक आपके श्रीमुख से वेद कथा का श्रवण सत्य के अन्वेषक बहनों और भाइयों के द्वारा किया गया ।आर्य समाज तर्क और विज्ञान सम्मत विचारों का प्रतिपादक है ,इसकी छाप श्री संजीव रूप जी के प्रवचनों पर थी तथा आयोजकों की चेतना पर भी उसका प्रभाव दिखता था।
प्रातः काल यज्ञ होता था । आखरी दिन न केवल यज्ञ हुआ अपितु यज्ञ किस प्रकार से किया जाता है ,इसका प्रशिक्षण भी वेद कथाकार द्वारा मंच पर उपस्थित रहकर प्रांगण में कराया गया । एक अनूठा अनुभव था । मंत्र के किस शब्द के साथ सामग्री हाथ में लेनी है ,स्वाहा के किस अक्षर के उच्चारण पर छोड़नी है ,सीधे अग्नि में सामग्री छोड़ी जानी चाहिए आदि – आदि अनेक बातें विद्वान वेदोपदेशक के द्वारा बताई जाती रहीं।
कार्यक्रम के आयोजन में आर्य समाज के अध्यक्ष श्री कमल कुमार आर्य ,कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चंद्र रस्तोगी मंत्री श्री संजय रस्तोगी तथा अन्य अनेक उत्साही बंधुओं का भारी सहयोग रहा ।
वेद कथा वाचक श्री संजीव रूप जी ने सत्र के प्रथम दिन ही अपने प्रवचन के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया था कि ईश्वर की उपासना किसी भौतिक वस्तु की मोहताज नहीं होती अपितु इसके लिए अत्यधिक प्रेम ही एकमात्र साधन है। अतिशय भावों में डूब कर हम ईश्वर की सच्ची उपासना करते हैं ।
आजकल बहुत से ढोंगी साधु संत चारों तरफ जनता को ठगने के लिए तैयार हैं । वेद कथावाचक जी ने कहा कि गुरु बनाओ जानकर /पानी पीना छान कर अर्थात गुरु के चयन में अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता है । अच्छा गुरु जीवन का कल्याण कर सकता है तथा गलत गुरु का चयन जीवन को डुबो देता है । आजकल ढ़ोंगियों की भरमार है । मुस्कुराते हुए आपने कहा कि ढोंगी साधु बाद में अगले जन्म में कुत्ता योनि में जन्म लेने के लिए अभिशप्त हो जाते हैं । सदुपदेश तभी सार्थक है ,जब वह उपदेशक के जीवन में उतर आए । धन से दूर रहते हुए निर्लोभी वृत्ति का आशय लेकर तथा अपने जीवन में सदाचार की स्थापना करते हुए जो संत उपदेश देगा ,उसी की वाणी का प्रभाव जनता पर पड़ सकेगा तथा सामाजिक परिवर्तन तभी संभव है । अनेक कथाओं के माध्यम से आपने इसी सत्य को बार-बार श्रोताओं के सामने रखा।
अंतिम दिवस के प्रातः कालीन सत्र में आर्य समाज के श्री कौशल्या नंदन की एक जिज्ञासा यह आई कि ईश्वर के पास शक्तियाँ तो अनंत हैं लेकिन प्रश्न यह है कि वह शक्तियाँ आई कहाँ से हैं ? इसका उत्तर उपदेशक महोदय ने यह दिया कि ईश्वर के पास शक्तियां कहीं से नहीं आई है । वह उसके पास हमेशा से हैं । तीन चीजें आपने बताया कि अनादि काल से चल रही हैं– परमात्मा ,जीवात्मा और प्रकृति । मनुष्य सौ वर्षों के लिए इस संसार में जन्म लेता है ,कर्म करता है और बारंबार भूलें करता हुआ कर्म के बंधन में बँधता जाता है तथा बारंबार पुनर्जन्म को प्राप्त होता है । जीवन में सावधानी रखते हुए सदाचार और समन्वित जीवन का आश्रय लेकर हम बंधन – मुक्त हो सकते हैं ।
एक शेर के माध्यम से आपने जीवन की क्षणभंगुरता को श्रोताओं के सामने रखा :-

मैं कल का भरोसा नहीं करता साकी
कल क्या पता जाम रहे न रहे
अर्थात मनुष्य को हर दिन हर क्षण इस प्रकार से जीना चाहिए कि हो सकता है यह हमारा आखिरी क्षण हो ।
उपदेशक महोदय के समक्ष चारों वेद रखे हुए थे तथा यह दुर्लभ स्थिति केवल आर्य समाज में ही देखी जा सकती है । वेदों के प्रति जनता की रुचि को जागृत करने की दिशा में आर्य समाज का भारी योगदान रहा है ।
मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से इस वर्ष के आयोजन में गौरवशाली बात यह रही कि आयोजकों ने उत्सव का आरंभ मेरे हाथों से ध्वज फहरा कर करवाया । मुझे स्मृति चिन्ह संस्था के पदाधिकारियों तथा कर्मठ कार्यकर्ताओं डॉक्टर अनिल कुमार तथा अन्य बंधु के हाथों से देकर गौरवान्वित किया । फूल माला पहनाकर मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम के अंत में दो शब्द कहने का अवसर प्रदान किया । आयोजकों ने मुझे मंच के दाहिने और रखे हुए सोफे पर बैठने के लिए अनुरोध किया , जिसे मैंने अत्यंत विनम्रता पूर्वक मना करते हुए जमीन पर दरी चाँदनी पर ही बैठने की इच्छा प्रकट की क्योंकि वेदकथा का श्रवण तो उपदेशक के सम्मुख जमीन पर बैठकर ही भली-भांति हो सकता है । मुझे प्रसन्नता है कि आयोजकों ने मेरा आग्रह स्वीकार कर लिया । कार्यक्रम का संचालन सक्रियता के पर्याय श्री मुकेश आर्य द्वारा किया गया। आर्य समाज , पट्टी टोला, रामपुर का हृदय से धन्यवाद।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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