*आर्य समाज जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करता*
आर्य समाज जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करता
रामपुर 26 अक्टूबर 2021 आर्य समाज (पट्टी टोला) में वेद – कथा कार्यक्रम में श्री संजीव रूप जी (जिला बदायूँ) ने एक ऐसा प्रश्न उठा दिया जिसको सुनकर सब आश्चर्यचकित रह गए । आपने कहा कि जाति व्यवस्था हमारी परंपरा नहीं है। यह तो महाभारत-काल के बाद आई हुई विकृति है।
उपस्थित जन समुदाय से आपने प्रश्न किया कि क्या महाभारत काल में अथवा इससे पूर्व किसी भी महापुरुष के नाम के आगे जाति सूचक शब्द आपको दिखाई दिया ? सभा मौन थी। अतः कथाकार महोदय ने बताया कि प्राचीन भारत में जाति व्यवस्था नहीं थी । किसी के नाम के आगे जाति सूचक शब्द होने का प्रश्न ही नहीं उठता । न कोई शर्मा ,न वर्मा ,न चतुर्वेदी ,न त्रिवेदी । सबका अलग-अलग नाम था और सब ज्ञान प्राप्ति के लिए सचेष्ट रहते थे । यह तो बाद में जातियाँ बनीं और सब लोग जातियों से पहचाने जाने लगे । कर्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का जाति से कोई संबंध नहीं है । महर्षि दयानंद के सपनों के अनुरूप भारत का निर्माण तभी हो सकता है ,जब हम जातिवाद को समाप्त कर सकें और जन्म के आधार पर किसी को ब्राह्मण ,वैश्य ,शूद्र अथवा क्षत्रिय कहने से इंकार कर दें ।
वेद कथाकार के सम्मुख चारों वेद रखे हुए थे । उन पर फूलों की माला सुशोभित हो रही थी और डंके की चोट पर जाति व्यवस्था को आर्य समाज के मंच से चुनौती मिल रही थी । ऐसा परिदृश्य अन्य किसी धार्मिक मंच पर देखने को नहीं मिलता । समाज को सुधारने की चाहत से जो लोग वहाँ उपस्थित थे ,वह कथावाचक महोदय की दृढ़ता की प्रशंसा किए बिना नहीं रहे ।
कथावाचक महोदय ने यह भी बताया कि हम उन महान महर्षि दयानंद के आदर्शों का स्मरण करने के लिए यहाँ उपस्थित होते हैं जिनसे एक रियासत के राजा ने एक बार कहा कि आपको अपार साम्राज्य और धन संपदा का स्वामित्व सौंप दूंगा ,बस केवल एक बार आप यह कह दीजिए कि मूर्ति-पूजा का विरोध नहीं करेंगे ! महर्षि दयानंद ने इंकार कर दिया और चलने लगे । राजा ने अभिमान पूर्वक महर्षि को रोक कर कहा” पुनः सोच लीजिए । इतना बड़ा पद और धन देने वाला आपको दूसरा नहीं मिलेगा।” कथावाचक ने बताया कि यह सुनकर महर्षि दयानंद ने स्वाभिमान से भर कर जवाब दिया “राजा ! आपको भी इतना बड़ा धन-संपदा को ठुकराने वाला कोई दूसरा नहीं मिलेगा ।” सुनकर राजा निरुत्तर हो गया और लज्जा से उसका सिर झुक गया।
कथावाचक महोदय ने यह भी बताया कि महर्षि दयानंद में सजीव रूप से तो दिव्य चेतना का प्रवाह रहता ही था लेकिन उनके चित्र में भी कुछ ऐसी शक्ति है कि जब कोई उनके चित्र का भी दर्शन कर लेता है तब उसके हृदय से सब प्रकार की मलिनता समाप्त हो जाती है। एक बार हिंदी के एक प्रसिद्ध साहित्यकार के मन में लोभ जाग गया । यहाँ तक कि वह हत्या के षड्यंत्र जैसे अपराध में भी लिप्त होने के लिए तैयार हो गए । अकस्मात उनकी दृष्टि महर्षि दयानंद के चित्र पर पड़ी और उन्होंने महसूस किया कि आज तक महर्षि दयानंद मुझे जो मुस्कुराती हुई मुद्रा में दिखाई पड़ते थे ,आज मुझ पर कुपित जान पड़ते हैं । तत्क्षण उन्होंने अपना इरादा बदल दिया । अपराध से मुख मोड़ लिया और जो संपदा उन्हें दुष्कर्म में शामिल होने के लिए दी जा रही थी ,उसे लौटा दिया । महापुरुषों के चित्र दर्शन का महत्व बताने के पश्चात विद्वान वक्ता ने सभा में उपस्थित स्त्री और पुरुषों से अनुरोध किया कि अपने जीवन को बहती नदी के समान बना लो ,जो सदैव लक्ष्य की ओर आगे बढ़ती रहती है । मार्ग में बाधाएँ आती हैं लेकिन वह रुकना नहीं जानती और अंत में सागर में विलीन होकर ही पूर्णता को प्राप्त करती है । इसी तरह अगर हम भी ईश्वर की प्राप्ति को ही जीवन का ध्येय बना लें तथा संसार की क्षुद्र प्रवृत्तियों में संलग्न होने के स्थान पर अथवा तुच्छ प्रलोभनों में फँसने के स्थान पर ईश्वर प्राप्ति के उच्च लक्ष्य को आत्मसात करें ,तब हमारा कल्याण निश्चित ही हो सकता है ।
कार्यक्रम में वेद कथा से पूर्व वेद भजन का मधुर गायन आमंत्रित गायक के श्री मुख से किया गया । समारोह का संचालन आर्य समाज रामपुर के मंत्री असित रस्तोगी ने किया । अंत में धन्यवाद संस्था के उपाध्यक्ष मुकेश आर्य द्वारा दिया गया ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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