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6 May 2020 · 1 min read

आरज़ू

अनचाहे ही याद तुम्हारी आई गुलाब-सी //
तुम हो फूलों की रंगत तुम हो शबाब-सी //
तुम से ही दिल वाबस्ता ,थीं तुम ही शुर्ख़रू //
अखलाक तुम्हारी आंखों से होता है रूबरू //
तुम ही वो माहताब हो जिसकी थी जुस्तजू //
ख़्वाबों में आ जाओ अब इतनी है आरज़ू ।।

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