आये है आपकी महफिल में
आये है आपकी महफिल में आँखो में पानी लेकर
अपने वतन की खामोश सच्ची एक कहानी लेकर
उसकी शौख निगाहें रोज मुझ पर दाग देती सवाल
राहें मोहब्बत में ले के चला कहाँ यह जवानी लेकर
मेरी जुस्तजू तुझे पुकारती सनम हर पल हर दिन
कभी तो आजा मेरे लिए एक शाम मस्तानी लेकर
दिल पर चोट मारी है तेरी बेरुख निगाहों ने सनम
रिमझिम बारिश अश्को की है जलता पानी लेकर
राहें इश्क में कही गुमशुदा बनकर ना रह जाऊं मैं
खिला दे मोहब्बत की कलियाँ मेरी कुर्बानी लेकर
खण्डर बन गया मेरे दिल का सुना यह ताजमहल
मर जाऊंगी मैं तो तेरे इश्क की चुनर धानी लेकर
दर्दें दिल की गलियों में आज भी इन्तजार अशोक
आजा तू अपने दिल की हंसी एक निशानी लेकर
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से
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