” आये फिर मनुहार के दिन हैं ” !!
आये फिर मनुहार के दिन हैं !!
बरसों बीते महक वही है !
बातों में भी चहक वही है !
हँसी लगे है आज खनकती ,
पाये वह झनकार के दिन है !!
श्वासों में तुम रची बसी हो !
लोग कहे तुम पलक चढ़ी हो !
अनजाने से पहचाने तक ,
मुझ पर सब उपकार के दिन हैं !!
आँखों की वह ललक न टूटे !
ह्रदय बसी वह झलक न छूटे !
हम दोनों भी चढ़े कसौटी ,
अब मीठे व्यवहार के दिन हैं !!
जाल बुने हैं रिश्ते नाते !
टूट गये तो हम अकुलाते !
नेह वार कर खुशियाँ पाई ,
बढ़े चलो उस पार के दिन हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )