*आयु मानव को खाती (कुंडलिया)*
आयु मानव को खाती (कुंडलिया)
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लगती दीमक काष्ठ को ,लगी लौह को जंग
दो दिन बीते हैं खिले ,उड़ा पुष्प का रंग
उड़ा पुष्प का रंग ,आयु मानव को खाती
यौवन का रस सूख , देह बूढ़ी हो जाती
कहते रवि कविराय ,काल की गति है ठगती
आता लेकर पाश ,देर फिर कितनी लगती
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रचयिता : रविप्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451