आया है बरसात
आया है बरसात का मौसम,
धोने सब पर जमीं जो धूल।
चाहे ऊंचे बाग वृक्ष हों ,
या हों छोटे नन्हें फूल।
चमक रही अट्टालिकाएं,
परत चढ़ी है मैल की ।
बर्षा जल से धूल घुल जाय,
अब तो पपड़ी शैल की।
मन मंदिर भी धूमिल है,
शमाँ भरा है धूंध से।
देव भी अब चाह रहे हैं,
पपड़ी टूटे जल बून्द से।
मानवता भी लंबी चादर,
ओढे है मोटी मैल की।
दिव्यज्ञान बारिश हो तो,
परत कटे अब तैल की।
छाया वाले तरु भी देखो,
हो गए हैं बड़े कटीले।
ममता रूपी बून्द मिलेगा,
छाया देंगे बड़े सजीले।
प्रदूषण की मैल जमीं है,
मानव नेत्र महान पर।
इस बर्षा सब धूल घुल जाए,
जमीं जो देश जहाँन पर।
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आशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
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