आया है ऋतुराज,
आधार छंद -हंसगति(मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान:-कुल 20 मात्राएँ 11,9 पर यति अंत में वाचिक गुरु तथा त्रिकल यति त्रिकल अनिवार्य
बदल रहा भूगोल ,धरा का देखो।
है शोभा अनमोल,धरा का देखो।
रौनक है चहुँ ओर, लुभाए मन को
छटा कोहरा ओल,धरा का देखो।
रंग बिरंगी पुष्प, सुगंधित क्यारी,
मिले मधुप दिल खोल,धरा का देखो।
उड़ते पंख पसार, गगन में ऊँचा,
करते विहग किल़ोल,धरा का देखो।
पीत रंग चहुँ ओर, फुलाये सरसों,
हृदय रहा है डोल ,धरा का देखो।
मधुमाती रस गन्ध, उठी महुआ का,
पुलकित लगे कपोल, धरा का देखो।
फूले कास -पलाश,विपिन उपवन में,
फाग फागुनी घोल, धरा का देखो।
भरे पयोधर नीर, सुहाये सरवर,
राग रागिनी बोल,धरा का देखो।
किये सभी श्रृंगार,सजी दुल्हन-सी
खिला बसंती चोल,धरा का देखो।
रंग अबीर गुलाल,उड़े अंबर में,
बजे मँजीरा ढ़ोल,धरा का देखो।
है उन्मुक्त बयार,चली पुरवाई,
बौराया बकलोल,धरा का देखो।
आया है ऋतुराज,लिए सौरभ सब
अंतस रहा टटोल,धरा का देखो।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली