आया सखी बसंत…!
दूर देश क्यों जा बसे?
हिय प्राण प्रिय कंत!
पल-पल डसती वेदना
देह शेष नहीं तंत।।
मेंहदी के शुभ रंग लिए
आया सखी बसंत।
शहरों और गाँवों में
छाया सखी बसंत।
जीवन में निस प्रेम रस
घोल रहा री! बसंत।
पनघट चौपालों में
डोल रहा री! बसंत।
रंगों में डूबे सभी
संगी और साथी ।
विरह अग्नि तन-मन
हिया पुर्वा तड़पाती।।
भांँग कोई साँसों में
ज्यों घोले सखी बसंत।
तितली के नव रंग लिए
ज्यों डोले सखी बसंत।।
सरसों की बाली झूमे
बिक्री महुआ गंध
धवल धूप में ज्यों लगे
नहाया सखी बसंत।
नीलम शर्मा ✍️