आया बसंत
-आया बसंत
आया आया बसंत का अनुपम त्यौहार
दुल्हन बनी धरा रंग बिरंगा हरित श्रृंगार।
बाग-बगीचा,गगन,धरा में आएं निखार
सुंदर सरस रंग बसंती प्रकृति के उपहार।
पूजन वंदन करूं मां की मिले कृपा बौछार
निर्मल उर मां शारदे करती सबका उपकार ।
पद्मासना विराजे मां सुनाओ वीणा झंकार
सब कला का हो प्रसार हर लेना सब अंधकार।
प्रसन्न हो श्वेतवसिनी मईया भरे दे ज्ञान भंडार
भाव-भक्ति प्रेम-प्रीत रंग में डूब रहा सारा संसार।
पीली सरसों के फूलों ने किया खेतों में विस्तार
कोयल कूके,नाचे मोर, भंवरे करें सुमन श्रृंगार ।
बिखरे शीतल सुगंध सब मस्ती की बहे बयार
ऋतुराज के अभिनंदन में भी खड़े पलाश तैयार।
कवि मन करे नूतन सृजन ले नई उपमा को धार
उमड़ घुमड़ कर आते मन में एक से एक विचार।
बसंत आया झूम कर अब है फागुन का इंतजार
बसंती फाल्गुनी मिश्रण से छाई निराली बहार।
मन आंगन में रहे खुशी बसंत सा समाएं संचार
मां भगवती शारदे हो प्रसन्न खुशियां सदाबहार।
नफरत भागे कोसों दूर पलता है प्रेम,प्रीत,प्यार
बसंती रंग रंगे हम फाल्गुनी गुलाल उड़े इस बार।
– सीमा गुप्ता, अलवर राजस्थान