आया जरूर हूँ
महफ़िल में आया जरूर हूँ
गम बांटने का कोई इरादा नही
नशे में भी जुबा न खुलेगी
बदनाम कर नाम मै कमाता नही
ये मेरा गम कड़बा है शराब सा
पर अपने जखीरे को मैं लुटाता नही
मेरे सामने चिपक कर खड़े है हबीब से
गैर को आज भी पहलू में मैं बिठाता नही